क्या गंभीर और नायर भारतीय बल्लेबाजों को तकनीकी खामियों से छुटकारा दिला सकतें है?

क्या गंभीर और नायर भारतीय बल्लेबाजों को तकनीकी खामियों से छुटकारा दिला सकतें है?

... कुशान सरकार ...

नयी दिल्ली, 17 दिसंबर (भाषा) रोहित शर्मा और विराट कोहली को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मौजूदा टेस्ट श्रृंखला के दौरान अपने विकेट गंवाने के तरीके के कारण आलोचना का सामना करना पड़ रहा है लेकिन युवा शुभमन गिल, यशस्वी जयसवाल और ऋषभ पंत भी क्रीज पर समय बिताने के लिए जरूरी धैर्य नहीं दिखा रहे जिससे टीम की समस्या काफी बढ़ गयी है।

टेस्ट मैच में बल्लेबाजी में धैर्य सबसे बड़ा हथियार है और यह खिलाड़ी में समय के साथ विकसित होता है। कोहली  2014 से 2019 के बीच जब अपने स्वर्णिम दौर में थे तब उन्होंने इस धैर्य को अच्छे से दिखाया था।

लोकेश राहुल ने अपनी शानदार तकनीक के दम पर वर्तमान श्रृंखला के दौरान पर्थ और ब्रिसबेन में क्रमश: 77 और 84 रन की पारी खेल इन परिस्थितियों से निपटने के तरीके के बारे में बताया है।

 जायसवाल की बात करें तो पर्थ में दूसरी पारी में 161 रन को छोड़कर उन्होंने निराश ही किया है। वह जिस तरह से क्रीज के पास कदमों का इस्तेमाल करते है उससे पगबाधा होने का खतरा बना रहता है।

गिल ऑफ स्टंप के बाहर वाली गेंदों को शरीर से दूर खेलते हुए ड्राइव लगाने को आतुर हो रहे हैं और इस कोशिश में लगातार अपना विकेट गंवा रहे है। अपने आक्रामक रवैये के लिए पहचाने जाने वाले पंत भी क्रीज से पांच मीटर दूर टप्पा खाकर उछाल लेने वाली गेंदों से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे है।

मुख्य कोच गौतम गंभीर और उनके सहायक अभिषेक नायर इस समस्या का समाधान ढूंढ सकते हैं। नायर को मुंबई क्रिकेट जगत में ‘माइंड कोच और लाइफ कोच के मिश्रण’ के तौर पर जाना जाता है।

 भारत के एक पूर्व महान खिलाड़ी ने गोपनीयता की शर्त पर कहा कि जरूरी नहीं कि कोई महान खिलाड़ी बढिया कोच साबित हो या कोई शानदार कोच बढ़िया खिलाड़ी रहा हो।

भारत के लिए 100 से अधिक टेस्ट मैच खेलने वाले इस खिलाड़ी ने कहा, ‘‘सभी महान खिलाड़ी या प्रतिष्ठित खिलाड़ी महान कोच नहीं होते हैं। उन्होंने खिलाड़ी के रूप में कुछ अविश्वसनीय चीजें की होंगी और जानते होंगे कि किसी विशेष स्थिति के दौरान क्या करना है और कैसी प्रतिक्रिया देनी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कोचिंग विज्ञान है और बहुत से लोग यह नहीं बता सकते कि कुछ चीजों को कैसे करने की आवश्यकता क्यों है। गौतम भी ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में काफी बार स्लिप में कैच दे देते थे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘आप युवा खिलाड़ियों की तकनीक में कुछ बदलाव कर सकते हैं लेकिन अनुभवी खिलाड़ियों के साथ ऐसा करना मुश्किल है। उन्हें व्यस्त कैलेंडर में अपने खेल पर काम करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता है।’’

कोहली को पिछले तीन-चार साल से बार-बार एक ही तरह आउट होते देखना निराशाजनक है। हर किसी को उनकी तकनीक में आयी कमी के बारे में पता है लेकिन क्या कोई इससे निजात पाने का तरीका बता सकता है?’’

  इंग्लैंड के 2021 के दौरे को छोड़ दे तो ‘एसईएनए (दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया)’ देशों में उनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है।

भारतीय बल्लेबाजों की तकनीक में सुधार नहीं होने पर पूर्व दिग्गज बल्लेबाज संजय मांजरेकर ने टीम में बल्लेबाजी कोच की उपयोगिता पर सवाल उठाया।

उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘ मुझे लगता है कि भारतीय टीम में बल्लेबाजी कोच की भूमिका की जांच करने का समय आ गया है। कुछ भारतीय बल्लेबाजों के साथ बड़े तकनीकी मुद्दे इतने लंबे समय तक अनसुलझे क्यों रहे हैं?’’

मांजरेकर का यह विचार संजय बांगड़, विक्रम राठौड़ और अब नायर की भूमिका पर सवाल उठाता है। टीम में उनका आधिकारिक पदनाम सहायक कोच हो सकता है, लेकिन वे बल्लेबाजी कोच हैं।’’

भारतीय टीम के पूर्व चयनकर्ता देवांग गांधी हालांकि भारतीय टीम के मौजूदा कोचों का बचाव करते दिखे।

उन्होंने कहा, ‘‘ नायर और गौतम पर निशाना साधना काफी आसान है लेकिन उनको टीम का हिस्सा बने अधिक समय नहीं हुआ है। किसी खिलाड़ी के साथ चर्चा करने से पहले आपको कुछ समय के लिए उसके साथ रहना होगा और एक बार जब दोनों के बीच किसी प्रकार का आपसी विश्वास बन जाए, तो आप उसे समाधान की पेशकश कर सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ अनुभवी खिलाड़ियों के साथ इस स्तर पर मानसिक पहलू से निपटने की चुनौती अधिक है।’’

राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में लेवल टू कोच रह चुके इस पूर्व सलामी बल्लेबाज ने कहा, ‘‘ 36 साल की उम्र में विराट को यह नहीं बताया जा सकता कि कैसे खेलना है। उन्हें यह तथ्य स्वीकार करना होगा कि शतकीय पारी खेलने के लिए उन्हें लगभग 200 गेंदों का सामना करना पड़ेगा। वह पहले 140 गेंदों में शतक लगाते थे , तो क्या वह 60 अतिरिक्त गेंद खेलने के लिए तैयार है?’’

भारतीय खिलाड़ी महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर की 2004 में सिडनी में खेली गयी 241 रन की पारी से प्रेरणा ले सकते हैं। तेंदुलकर ने स्लिप या विकेटकीपर को कैच देने से बचने के लिए इस पारी में 200 रन पूरा होने तक अपना पसंदीदा कवर ड्राइव शॉट एक बार भी नहीं खेला था।

गांधी ने कहा, ‘‘ यह मानसिक मजबूती के बारे में है। आप तेंदुलकर और कोहली जैसे खिलाड़ी को सुझाव दे सकते हैं लेकिन इस स्तर पर कोचिंग संभव नहीं है। कोचिंग जूनियर स्तर पर होती है।’’