उस्ताद जाकिर हुसैन की इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से गई जान, फेफड़ों का प्रतिरोपण ही एकमात्र इलाज

उस्ताद जाकिर हुसैन की इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से गई जान, फेफड़ों का प्रतिरोपण ही एकमात्र इलाज

नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा) प्रसिद्ध तबला वादक जाकिर हुसैन की मौत इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस के कारण हुई। फेफड़े की यह बीमारी शरीर को अत्यधिक दुर्बल बना देती है, जिसे एक प्रकार से मृत्युदंड माना जाता है।

इस बीमारी का एकमात्र मुकम्मल इलाज फेफड़े का प्रतिरोपण है और वह भी यदि सही समय पर किया जाए।

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के श्वसन एवं गहन चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अवधेश बंसल ने बताया कि ‘एंटी-फाइब्रोटिक दवाएं’ और ऑक्सीजन बीमारी के विकराल रूप धारण करने की गति को धीमा कर सकती हैं, जिससे व्यक्ति सात-आठ साल और जी सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस का कोई इलाज नहीं है। फेफड़े के प्रतिरोपण से निश्चित रूप से कुछ चुनिंदा रोगियों को ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसे भी सही समय पर किया जाना चाहिए और इसमें स्थिति की गंभीरता, आयु और अन्य स्वास्थ्य कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। प्रतिरोपण का जीवनकाल भी पांच से छह वर्ष होता है।’’

भारतीय परिदृश्य में बीमारी होने के बाद मरीज कम से कम 10 से 12 वर्षों तक जीवित रहते हैं।

चिकित्सक ने कहा, ‘‘ लेकिन हर मरीज का शरीर और प्रणाली अलग-अलग तरीके से व्यवहार करती है और इसका कोई निश्चित नियम नहीं है।’’

बंसल ने कहा कि जहां तक बीमारी के कारणों का सवाल है तो करीब 50 प्रतिशत मरीजों में इसका कारण ज्ञात नहीं है, यही कारण है कि ‘‘इडियोपैथिक’’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।

लेकिन अन्य 50 प्रतिशत मामलों में, रूमटॉइड आर्थ्राइटिस, सिस्टेमिक स्क्लेरोसिस या ल्यूपस से पीड़ित रोगियों को इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस (आईपीएफ) हो सकता है।

उन्होंने बताया कि आईपीएफ की स्थिति में फेफड़ों में सामान्य ऊतक का स्थान फाइब्रोटिक ऊतक ले लेते हैं, जिससे फेफड़ों से रक्त तक ऑक्सीजन का पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

डॉ. बंसल ने बताया, ‘‘फेफड़ों का आकार घट जाता है। इसका मतलब है कि यह सिकुड़ने लगता है, जिससे सांस लेना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है।’’

फेफड़े के फाइब्रोसिस के कई प्रकार हैं, जिनमें सबसे आम आईपीएफ है, जो लगभग 50 प्रतिशत रोगियों में होता है।

डॉ. बंसल ने कहा, ‘‘यह बीमारी आमतौर पर 50 वर्ष की आयु में होती है। लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकती है। पश्चिमी देशों में कहा जाता है कि यदि आपको कोई निश्चित निदान मिल जाता है, तो निदान के बाद आपका जीवन काल लगभग सात से आठ वर्ष का होता है।’’

दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( एम्स) में पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर एवं स्लीप मेडिसिन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सौरभ मित्तल ने कहा कि बढ़ती उम्र के अलावा धूम्रपान से भी आईपीएफ का जोखिम बढ़ता है।

डॉ. मित्तल ने कहा, ‘‘इसके अलावा, यदि किसी के माता-पिता या भाई-बहन को आईपीएफ है, तो उन्हें भी यह रोग होने का खतरा स्वतः ही अधिक होता है।’’

उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे पेशे हैं, जिनमें धुएं और धूल के संपर्क में आना पड़ता है, उनसे भी आईपीएफ का खतरा बढ़ जाता है। गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स रोग भी आईपीएफ के लिए अतिसंवेदनशील होता है।

(यह खबर समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा की ऑटो जनरेटेड न्यूज फिड से सीधे ली गई है और लोकतेज टीम ने इसमें कोई संपादकीय फेरबदल नहीं किया है।)

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