गायन, कविता और साहित्यिक चर्चाओं के माध्यम से उर्दू लोकप्रिय हो रही : संजीव सराफ
(मनीष सैन)
नयी दिल्ली, 14 दिसंबर (भाषा) उर्दू भाषा को आम लोगों तक पहुंचाने वाले वार्षिक उत्सव जश्न-ए-रेख्ता ने शहर के युवाओं और बुजुर्गों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं।
जश्न-ए-रेख्ता के संस्थापक संजीव सराफ ने कहा कि अगर यह एक ‘पूरी तरह से साहित्यिक कार्यक्रम’ होता तो यह भाषा को लोगों के बीच फिर से लोकप्रिय नहीं बना पाता।
उर्दू साहित्य और इससे जुड़ी संस्कृति पर केंद्रित यह उत्सव 2015 में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) से शुरू हुआ था। पिछले कुछ वर्षों से इसे जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित किया जाने लगा ताकि उर्दू प्रेमियों की उमड़ती भीड़ को समायोजित किया जा सके।
सराफ ने ‘पीटीआई-भाषा’ को फोन पर दिए साक्षात्कार में कहा, “जश्न-ए-रेख्ता कभी भी पूर्ण साहित्यिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि शुरू से ही यह साहित्य और लोकप्रिय विषय-वस्तु का मिश्रण रहा है। हम जब भी पूर्ण साहित्यिक आयोजन और संगोष्ठी देखते हैं तो उसमें शायद 20 या 50 श्रोता ही होते हैं।”
उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा विद्वानों की चर्चाओं तक सीमित रहने के कारण दुर्भाग्यपूर्ण रही है।
सराफ ने कहा, “उर्दू को आम लोगों तक पहुंचाने का कुछ श्रेय रेख्ता को जाता है। साहित्यिक कार्यक्रम विद्वानों, शोधकर्ताओं और प्रोफेसरों तक ही सीमित हैं। उर्दू आम लोगों की भाषा है। हमारी फिल्मों, गीतों और गजलों ने इसे लोकप्रिय बनाया है। कितने लोग संगोष्ठी और सम्मेलनों में भाग लेने में रुचि रखते हैं?”
उर्दू भाषा और हिंदुस्तानी संस्कृति का भव्य उत्सव जश्न-ए-रेख्ता गजल, सूफी संगीत, कव्वाली, दास्तानगोई, पैनल चर्चा, मुशायरा, कविता पाठ, और ऐवान-ए-जायका सहित विविध कला रूपों के आयोजन के लिए जाना जाता है।
उद्यमी व लेखक के रूप में मशहूर सराफ ने कहा, “हम मनोरंजक और लोकप्रिय तरीके से बेहतरीन उर्दू गजलें, सूफी संगीत कव्वाली जैसी सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं। विद्वान भले ही इसे अनदेखा करें लेकिन कोई भाषा व्याख्यान और चर्चाओं के माध्यम से लोकप्रिय नहीं होती, बल्कि एक भाषा तब लोकप्रिय होती है जब लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं फिर चाहे उनका उससे कोई लेना-देना न हो।”
यह महोत्सव 15 दिसंबर को समाप्त होगा।