कांग्रेस को ‘इंडिया’ गठबंधन के नेतृत्वकर्ता के तौर पर अपनी जगह बनानी चाहिए: उमर
(विजय जोशी और सुमीर कौल)
नयी दिल्ली, 14 दिसंबर (भाषा) जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस को लेकर अन्य घटकों के बीच बढ़ते असंतोष को स्वीकार करते हुए कहा है कि उसे गठबंधन के नेतृत्वकर्ता के तौर पर अपनी जगह बनानी चाहिए न कि इसे हल्के में लेना चाहिए।
अब्दुल्ला ने कांग्रेस की देशभर में पहुंच और संसद में सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में उसकी अहम स्थिति को स्वीकार किया, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया कि उसे नेतृत्व संभालना चाहिए और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने का मुद्दा उठाना चाहिए।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का अक्टूबर में मुख्यमंत्री बनने के बाद ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये अपने पहले साक्षात्कार में अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘ संसद में सबसे बड़ी पार्टी होने तथा लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता का पद की जिम्मेदारी संभालने के कारण, उनका देशभर में प्रभाव है, जिस पर कोई अन्य पार्टी दावा नहीं कर सकती। वे विपक्ष के आंदोलन के स्वाभाविक नेता हैं।’’
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद कुछ सहयोगी दलों में बेचैनी है, क्योंकि उन्हें लगता है कि कांग्रेस ‘‘इसे (नेतृत्व) साबित करने, इसे अर्जित करने या इसे बनाए रखने के लिए पर्याप्त काम नहीं कर रही है। यह ऐसी बात है जिस पर कांग्रेस को विचार करना चाहिए।’’
अब्दुल्ला ने हालांकि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की प्रशंसा करते हुए उन्हें विपक्षी गठबंधन में बेजोड़ कद की नेता बताया। उन्होंने कहा, ‘‘जब ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक एक साथ आते हैं तो वह एक अहम नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाती है।’’
अब्दुल्ला ने शरद पवार या लालू यादव जैसे नेताओं द्वारा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बेहतर नेता बताने वाले बयानों के बारे में पूछे गए सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया। लेकिन उन्होंने ‘इंडिया’ गठबंधन की नियमित संपर्क की कमी को उजागर किया और चेतावनी दी कि महज चुनाव के समय अति सक्रिय रहने से गठबंधन को खतरा पैदा हो गया है।
अब्दुल्ला ने चुनावों से परे भी सतत बातचीत की आवश्यकता पर बल दिया तथा कहा कि गठबंधन का वर्तमान दृष्टिकोण छितराया और अप्रभावी प्रतीत होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी सक्रियता सिर्फ संसदीय चुनावों से छह महीने पहले तक ही सीमित नहीं रह सकती। यह उससे कहीं अधिक होनी चाहिए। पिछली बार हम तब मिले थे जब लोकसभा के नतीजे आए ही थे। ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए कोई औपचारिक या अनौपचारिक काम नहीं किया गया है।’’
केंद्र शासित प्रदेश में सत्तारूढ़ दल नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी निभा रहे अब्दुल्ला ने एक संवाद का एक सुव्यस्थित तंत्र स्थापित करने के महत्व पर भी बल दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘आपको नियमित बातचीत का कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि आप लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही सक्रिय हो जाएं और अचानक बातचीत करने लगें तथा चीजों को सुलझाने का प्रयास करने लगें।’’
अब्दुल्ला की टिप्पणियों से विपक्षी गठबंधन के भीतर अंतर्निहित तनाव का पता चलता है। साथ ही इससे संकेत मिलता है कि अनियमित बैठकों से छोटी-मोटी असहमतियां बढ़ सकती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि हमारे बीच बातचीत की प्रक्रिया अधिक नियमित होती, तो शायद ये छोटी-छोटी परेशानियां बड़ा रूप नहीं ले पातीं।’’
अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के कांग्रेस के साथ किए गए गठबंधन से भी बहुत खुश नहीं दिखे, क्योंकि चुनाव प्रचार में कांग्रेस अपना प्रभाव दिखाने में विफल रही।
जम्मू-कश्मीर की 90 सदस्यीय विधानसभा में नेकां ने 41 सीट जीतीं, जबकि कांग्रेस को छह सीट मिलीं। पर्यवेक्षकों ने रेखांकित किया कि कांग्रेस नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान बहुत कम काम किया और सारा काम नेकां पर छोड़ दिया।
विपक्षी दलों ने ‘इंडिया’ गठबंधन का गठन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)के बढ़ते प्रभाव को मिलकर रोकने के लिए किया था लेकिन वह उल्लेखनीय सफलता हासिल करने में विफल रहा। संसदीय चुनावों में अपने अच्छे प्रदर्शन के बावजूद, कांग्रेस और उसके सहयोगी दल हाल ही में हुए दो विधानसभा चुनावों - हरियाणा और महाराष्ट्र में बुरी तरह विफल रहे हैं।
अब्दुल्ला की टिप्पणियां ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस)के भीतर असंतोष तथा भविष्य में राजनीतिक गतिविधियों में भाजपा का मुकाबला करने में आने वाली चुनौतियों का सबूत हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस को अपनी जीत की दर पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। उसे भविष्य के चुनावों के लिए उपयुक्त सबक सीखने की जरूरत है।’’
अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में गठबंधन को लेकर असहजता की प्रवृत्ति बार-बार देखी गई है। उन्होंने कहा कि इन तनावों ने कथित तौर पर संभावित गठबंधनों के नहीं बन पाने की भूमिका निभाई है, जैसे कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच समांजस्य में विफलता जबकि पिछले आम चुनाव में वह साथ थे।
अब्दुल्ला ने इस सवाल पर कि क्या कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर में मंत्री पद मिल सकता है, के जवाब में अतीत में सत्ता में साझेदारी के अनुभवों का उदाहरण देते हुए मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का हवाला दिया, जब मंत्री पद का निर्धारण पार्टी के विधायकों की संख्या के आधार पर किया जाता था। उस समय अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला को एक छोटा सा मंत्रालय मिला था।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘ अगर यह हमारे लिए तब लागू था तो यह अब कांग्रेस पर भी लागू है। तथ्य यह है कि केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते हम केवल नौ मंत्री बना सकते हैं। मुख्यमंत्री सहित नौ मंत्रियों के साथ, मैं कांग्रेस को उससे अधिक की पेशकश करने की स्थिति में नहीं था, जो हमने उन्हें दिया।’’
कांग्रेस पार्टी ने संकेत दिया है कि सरकार में उनकी भागीदारी जम्मू-कश्मीर को पुनः राज्य का दर्जा मिलने पर निर्भर करेगी, जिससे भविष्य में राजनीतिक रणनीतियों में संभावित बदलाव का संकेत मिलता है।
अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘फिलहाल उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा, वे इससे (सरकार से) बाहर रहेंगे। एक बार जब राज्य का दर्जा बहाल हो जाएगा, तो इसमें बदलाव आएगा। इसलिए हमें उम्मीद है कि जब वे संसद में अन्य मुद्दों की लड़ाई लड़ लेंगे, तो वे जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे के बारे में भी बात करेंगे।’’