सूरत : कपड़ा उद्योग में लेबरों की कमी में हुआ सुधार, दिसंबर के अंत तक सभी श्रमयोगियों के आने की उम्मीद
सभी श्रमयोगियों के आ जाने पर भी कपड़ा उद्योग में 10 से 20 प्रतिशत लेबरों की कमी बनी रहेगी : राजेन्द्र उपाध्याय
औद्योगिक नगरी सूरत में टेक्सटाइल उद्योग से लेकर अनेक प्रकार के औद्योगिक इकाइयां स्थापित हैं, जिसमें लाखों की तादाद में श्रमिक वर्ग कार्यरत हैं। सूरत के हजीरा विस्तार में अनेक कॉर्पोरेट कंपनियों के अलावा सूरत शहर में टेक्सटाइल मार्केट तथा आसपास के क्षेत्रों में डाइंग-प्रिंटिंग मिलों, एंब्रॉयडरी कारखानें, लूम्स कारखानें, वीविंग उद्योग सहित अनेक कलकारखाने कार्यरत हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आदि राज्यों के बड़ी संख्या में श्रमयोगी कार्यरत हैं। दीपावली से एक सप्ताह पूर्व से ही उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड आदि राज्यों के श्रमयोगी अपने वतन की ओर रुख करने लगते हैं, जो दीपावली पर्व, छठ महापर्व के बाद धान की कटाई के साथ ही साथ नवंबर की शादी-विवाह के प्रसंग में शामिल होने के बाद ही सूरत की ओर रुख करते हैं। इस बीच सूरत के औद्योगिक एकमों में कपड़ा मार्केट से लेकर मिलों में लेबरों की अत्यधिक कमी महसूस की जाती है, जिसका खामियाजा लेबर ठेकेदार को भुगतना पड़ता है।
धान की कटाई के साथ ही शादी विवाह के सीजन पूर्ण होने पर अब श्रमयोगी सूरत की ओर रुख करने लगे हैं, जिससे श्रमिकों की कमी में काफी सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी लेबरों के आने का सिलसिला जारी है। टिकटों की किल्लत होने से दिसंबर के अंत तक सभी श्रमिकों के सूरत आने की उम्मीद है। वतन गये सभी श्रमयोगियों के आ जाने के बाद भी सूरत के कपड़ा उद्योग में लेबरों की कमी बने रहेंगे।
ग्रे फीनिश डिलीवरी टेम्पो कान्ट्रेक्टर वेलफेयर एसोसिएशन के प्रमुख राजेंद्र उपाध्याय ने बताया कि पहले की अपेक्षाकृत लेबरों की कमी में सुधार हुआ है। परंतु वतन गये सभी श्रमयोगियों के आ जाने का बावजूद कपड़ा उद्योग में 10 से 20 प्रतिशत लेबरों की कमी बने रहने के आसार हैं। कारण कि डाइंग- प्रिंटिंग मिलों एवं कपड़ा मार्केट की तुलना में कारपोरेट कंपनियों में श्रमयोगियों को पगार अधिक मिलता है, जिससे श्रमिक वर्ग कॉरपोरेट कंपनियों को प्राथिमकता देते हैं। जहां एक ओर कपड़ा मार्केट एवं डाइंग-प्रिंटिंग मिलों में श्रमयोगियों को 500 से 600 रुपये दैनिक मिलते हैं, वहीं कॉरपोरेट कंपनियों में 800 से 1000 रुपए दैनिक मिलने से श्रमयोगी कॉर्पोरेट कंपनियों को तवज्जों देते हैं।
उन्होंने बताया कि हाल में लेबरों की कमी में सुधार होने से जो लेबर मनमाना दैनिक रुपए ले रहे थे उस पर लगाम लग गया है। पूर्व में 1500 से 1600 रुपये प्रतिदिन देकर लेबरों को कपड़ा मार्केट में काम के लिए लाना पड़ता था। आज वही श्रमिक 900 से 1000 में भी आसानी से मिल जा रहे हैं। आगामी दिनों में बाहर गांव गए सभी श्रमिकों के आने के बाद लेबरों की कमी में और भी सुधार होगा। हालांकि श्रमयोगियों की कमी सूरत कपड़ा उद्योग के लिए बनी रहेगी।