राज कपूर की 100वीं जयंती : रणधीर ने अपने पिता को बताया अनोखी प्रतिभा का धनी व्यक्ति
मुंबई, 13 दिसंबर (भाषा) राज कपूर की 100वीं जयंती के मौके पर उनके बेटे रणधीर कपूर ने पिता को याद करते हुए कहा कि वह सिनेमा जगत में अनोखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे, लेकिन घर पर वह एक प्यारे पिता थे और उन्हें जब भी समय मिलता था तो वह अपने बच्चों के साथ समय बिताया करते थे।
रणधीर ने कहा कि उन्हें पिता की हर दिन याद आती है। रणधीर ने 1971 की फिल्म 'कल आज और कल' में पिता राज कपूर और दादा पृथ्वीराज कपूर को निर्देशित किया था।
रणधीर ने 'पीटीआई-भाषा' को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘‘मुझे राज कपूर का बेटा होने पर खुशी और गर्व है। आज भी हम उनके बारे में सोचते हैं और उसी तरह से जिंदगी जीते हैं जैसा वह चाहते थे, यानी स्वस्थ और खुश रहना।’’
रणधीर (77) ने अपने पिता को याद करते हुए कहा, ‘‘वह एक प्यारे पिता थे। उन्हें बच्चों से बहुत लगाव था। असल जिंदगी में, वह बहुत ही साधारण इंसान थे। वह एक आम पिता की तरह ही थे। वह अक्सर काम में व्यस्त रहते थे। लेकिन, जब भी उनके पास समय होता, वह हमारे साथ समय बिताते और हमें माटुंगा में अपने पसंदीदा डोसा सेंटर पर खाना खिलाने ले जाते थे।’’
रणधीर ने अपने पिता की उन फिल्मों को भी याद किया जिन्हें वह सबसे ज्यादा पसंद करते थे जिनमें 'आवारा', 'श्री 420', और 'जिस देश में गंगा बहती' जैसी फिल्में हैं।
रणधीर ने अपने पिता की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘वह अपनी तरह के अनूठे व्यक्ति थे और सिनेमा के क्षेत्र में उनकी अपनी एक अलग शैली थी। वह अपने समय से आगे थे। उन्होंने सिनेमा के माध्यम से आम आदमी की आवाज को सार्वजनिक मंच पर पहुंचाया। ’’
अभिनेता एवं फिल्मकार रणधीर ने कहा कि उनके पिता ऐसी फिल्में बनाना चाहते थे जो सभी को पसंद आएं, यही वजह है कि उनकी फिल्में न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पसंद की जाती हैं।
रणधीर ने अपने पिता को 'धरम करम' में भी निर्देशित किया था और वह राज कपूर को एक 'आज्ञाकारी' अभिनेता के रूप में याद करते हैं।
उन्होंने राज कपूर को एक आज्ञाकारी अभिनेता करार देते हुए कहा, ‘‘ एक अभिनेता के रूप में वह आज्ञाकारी थे और निर्देशक के निर्देशों के आधार पर सब कुछ करते थे।’’
रणधीर ने कहा, ‘‘उन्हें गुजरे हुए इतने साल हो गए हैं और यह बहुत अच्छी बात है कि दुनिया भर के लोग उन्हें और उनके सिनेमा को याद करते हैं। यह हमें भावुक कर देता है।’’
राज कपूर 14 दिसंबर को 100 साल के हो जाते। उनकी पहली फिल्म 1948 में प्रदर्शित हुई थी, जो आजादी के एक साल बाद की बात है। जैसे-जैसे भारत दशकों में विकसित हुआ, वैसे-वैसे उनकी फिल्में भी विकसित होती गईं। उनकी शुरुआती श्वेत श्याम फिल्में समाज के सपनों और संघर्षों को दर्शाने वालीं थीं। बाद में चमकदार रंगों में उनकी फिल्में अवतरित हुईं।
राज कपूर ने अपनी पहली फिल्म से ही आर के स्टूडियो की शुरुआत की। उन्हें आज भी भारतीय सिनेमा के वास्तविक ‘शोमैन’ के रूप में जाना जाता है।
उन्होंने ‘‘बरसात’’ के उत्साही प्रेमी, ‘‘श्री 420’’ के गरीब, ‘‘आवारा’’ के चैपलिन जैसे बदकिस्मत युवा, ‘‘मेरा नाम जोकर’’ के संवेदनशील जोकर और ‘‘संगम’’ में अपनी पत्नी का बेहद ख्याल रखने वाले पति के तौर पर यादगार भूमिका निभाई। ‘‘बॉबी’’, ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’’ और ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ जैसी फिल्में भी शामिल हैं, जिनका उन्होंने निर्माण और निर्देशन किया, लेकिन उनमें अभिनय नहीं किया।
राज कपूर ने दो अन्य महान अभिनेताओं देव आनंद और पेशावर से ही बॉम्बे (अब मुंबई) आए दिलीप कुमार के साथ बड़े परदे पर राज किया। हालांकि, अपने सहयोगियों से अलग, राज कपूर न केवल अभिनेता थे, बल्कि निर्माता और निर्देशक भी थे, जिनकी फिल्मों का संगीत कई दशकों बाद भी लोगों के दिलों को छूता है।
उन्होंने केवल 10 फिल्में निर्देशित कीं, जिनमें से कुछ अविस्मरणीय क्लासिक फिल्मों की सूची में ‘‘आवारा’’ और ‘‘श्री 420’’ हैं, अन्य ‘‘बॉबी’’ और ‘‘संगम’’ ब्लॉकबस्टर फिल्में और फिर विवादास्पद हिट फिल्में हैं, जिनमें ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’’, ‘‘प्रेम रोग’’ और ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ शामिल हैं।
राज कपूर की फिल्मों की सूची में ‘‘अंदाज’’, ‘‘जागते रहो’’ और ‘‘तीसरी कसम’’ शामिल हैं, जहां अभिनेता के रूप में राज कपूर ने अपनी चमक बिखेरी। उन्होंने अपने आर के स्टूडियो के जरिए फिल्में भी बनाईं, जो कई दशकों तक इंडस्ट्री में सबसे प्रभावशाली फिल्म स्टूडियो में से एक रहा। इन सबमें एक फ्लॉप-बेहद महत्वाकांक्षी फिल्म ‘‘मेरा नाम जोकर’’ भी थी, जिसे अब क्लासिक माना जाता है। इसकी असफलता ने उन्हें तोड़ दिया और उन्होंने किशोर रोमांस पर आधारित ‘‘बॉबी’’ का निर्माण किया।
उनकी सभी फिल्मों में बेहतरीन गाने थे। वैश्विक हिट ‘‘आवारा हूं’’, ‘‘जीना यहां मरना यहां’’, ‘‘प्यार हुआ इकरार हुआ’’ या ‘‘हम तुम एक कमरे में बंद हो’’।
राज कपूर के भाई शशि कपूर ने एक वृत्तचित्र में उन्हें इस तरह याद किया था, ‘‘वह एक अद्भुत संगीतकार थे...मुझे लगता है कि यह जन्मजात था। मेरे पिता से नहीं, शायद उन्हें यह मेरी मां से मिला था जो एक गायिका थीं...वह कोई भी वाद्य यंत्र बजा सकते थे, चाहे वह अकॉर्डियन, तबला, पियानो या फिर बांसुरी हो।’’
राज कपूर तीन भाइयों में सबसे बड़े थे- राज और शशि के अलावा उनके एक अन्य भाई शम्मी कपूर थे। अपने पिता पृथ्वीराज कपूर की छाया से दूर, तीनों भाइयों ने फिल्म जगत में अपनी अलग जगह बनाई।
राज कपूर सिर्फ 17 साल के थे जब उन्होंने अपने पिता से पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में करियर बनाने की इजाजत मांगी। पृथ्वीराज इस शर्त पर राजी हुए कि वह 10 रुपये मासिक वजीफे पर उनके द्वारा नियुक्त कई सहायकों में से एक के रूप में काम करेंगे।
वर्ष 1947 में मधुबाला के साथ बनी ‘‘नील कमल’’ सहित अभिनेता के रूप में कुछ फिल्मों में काम करने के बाद, राज कपूर ने ‘‘आग’’ के साथ निर्देशक और निर्माता के रूप में कदम रखने का फैसला किया। उस समय उनकी उम्र 24 साल थी और वह उस समय दुनिया के सबसे युवा फिल्मकारों में से एक थे।
‘‘आग’’ आंतरिक बनाम बाहरी सुंदरता, प्रेम और निष्ठा पर भी चिंतन थी, ये ऐसे विषय थे जो फिल्मकार के साथ गहराई से जुड़े थे और उन्होंने इसे ‘‘बरसात’’ (1949) और ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’’ (1978) में फिर से पेश किया।
राज कपूर ने अपनी कई प्रारंभिक फिल्मों में चार्ली चैपलिन के व्यक्तित्व को अपनाया, जिसकी शुरुआत 1951 में आई ‘‘आवारा’’ से हुई और फिर ‘‘श्री 420’’ तथा ‘‘जिस देश में गंगा बहती है’’ में भी उन्होंने काम किया, जिसका निर्देशन उनके विश्वस्त सहयोगी राधू करमाकर ने किया था।
बतौर फिल्मकार अपने 37 साल के करियर में 1948 में ‘‘आग’’ से शुरू होकर 1985 में ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ तक वह ज़्यादातर एक ही प्रतिभाशाली टीम के साथ जुड़े रहे। इसमें लेखक के ए अब्बास, छायाकार करमाकर, संगीतकार शंकर-जयकिशन, गीतकार शैलेंद्र और गायक मुकेश शामिल थे, जिन्हें वे अपनी आत्मा कहते थे और जो उनकी आवाज के रूप में जाने जाते थे।