सरकार और राजभवन के बीच के रिश्ते को संवेदनशील नहीं मानती: राज्यपाल आनंदीबेन पटेल

सरकार और राजभवन के बीच के रिश्ते को संवेदनशील नहीं मानती: राज्यपाल आनंदीबेन पटेल

(मनीष चंद्र पांडेय)

लखनऊ, 13 दिसंबर (भाषा) उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि सरकार और राज्यपाल को लोगों के लिए काम करना है और इस पूरक रिश्ते में संवेदनशीलता के लिए बहुत कम जगह है।

राज्यपाल ने साथ ही इस बात पर जोर दिया कि दोनों को जनता के कल्याण के लिए काम करना है।

पटेल ने 29 जुलाई 2019 को पदभार संभाला था और वह 1949 में सरोजिनी नायडू के बाद उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल हैं और वह सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली राज्यपाल भी हैं।

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 'पीटीआई-भाषा' से विशेष बातचीत में कहा “मैं नहीं मानती कि राजभवन के साथ संबंध संवेदनशील होते हैं। सरकार और राज्यपाल दोनों को ही जनता के भले के लिए काम करना होता है। इसमें संवेदनशीलता जैसी कोई बात नहीं होती।"

हालांकि उन्होंने यह भी कहा, "पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में सरकार और राजभवन के बीच टकराव जैसे सवाल उठते हैं। ऐसे राज्यों में राज्यपाल की शक्तियों को कम करने के प्रयासों के तहत कानून में बदलाव किए जाते हैं। परिणामस्वरूप मामले अदालत में पहुंचते हैं।"

राज्यपाल और कुलाधिपति के रूप में अपनी दोहरी जिम्मेदारियों के बारे में पटेल ने कहा, "मैं इन दोनों ही दायित्वों का आनंद लेती हूं, क्योंकि यह दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं। पश्चिम बंगाल और केरल के मुकाबले उत्तर प्रदेश में स्थितियां अलग हैं। पश्चिम बंगाल और केरल में राज्यपाल और कुलाधिपति को विश्वविद्यालय में बड़ी मुश्किल से काम करने दिया जाता है। उत्तर प्रदेश में स्थितियां अलग हैं क्योंकि मैं उसी पार्टी से हूं जो यहां सत्ता में है। यही वजह है कि मुझे किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।”

पटेल 15 अगस्त 2018 से 28 जुलाई 2019 तक छत्तीसगढ़ और 23 जनवरी 2018 से 28 जुलाई 2019 तक मध्य प्रदेश की राज्यपाल भी रहीं।

उन्होंने कहा, ‘‘ राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बहुत मामूली सा अंतर होता है। मुख्यमंत्री या मंत्री राज्य के विकास से संबंधित मामलों पर स्वयं निर्णय लेते हैं और उनके क्रियान्वयन तक उसके बारे में जानकारी लेते रहते हैं। विकास कार्यों को अंतिम रूप देना या उनके लिए आवंटन करना राज्यपाल की जिम्मेदारी नहीं है, मगर राज्यपाल केंद्र सरकार की सभी योजनाओं और परियोजनाओं की समीक्षा जरूर कर सकते हैं।"

विपक्षी दलों के साथ अपने संबंधों का जिक्र करते हुए पटेल ने कहा, "राज्यपाल के तौर पर मैं सभी से मिलती हूं। यहां तक कि (गुजरात की) मुख्यमंत्री के रूप में भी मैं सभी से मुलाकात करती थी। हम तो चाय पीने के दौरान भी परियोजनाओं को मंजूरी दे दिया करते थे। अगर हम विपक्षी दलों के विधायकों की परियोजनाओं को मंजूरी नहीं देते हैं तो दरअसल यह जनता के लिए अच्छा नहीं होता।"

उन्होंने कहा, "मुझे बताइए कि अगर कोई विपक्षी नेताओं की सड़क परियोजना को मंजूरी नहीं देता है तो क्या इससे संबंधित क्षेत्र के लोगों को असुविधा नहीं होगी, इसीलिए मैं महसूस करती हूं कि चाहे मुख्यमंत्री हो या राज्यपाल, उन्हें सभी से मिलना चाहिए। चुनाव के दौरान कोई भी नेता अपनी पार्टी की विचारधारा के हिसाब से बोल सकता है और काम कर सकता है लेकिन उसके बाद संवैधानिक पद पर बैठने पर हर किसी को पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता से काम करना चाहिए।"

सख्त अनुशासन के लिए जानी जाने वाली उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। वह वर्तमान में उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति भी हैं। उनका कहना है कि वह राज्य के विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली में गुणात्मक बदलाव लाने के लिए भी काम कर रही हैं।

उन्होंने कहा, “जिलों में जाना, लोगों से मिलना और उनकी समस्याओं को सरकार तक पहुंचाना राज्यपाल के कार्यों में शामिल हैं। मैंने विश्वविद्यालय को आंगनवाड़ियों से जोड़कर व्यवस्था में परिवर्तन किया है। जब हमारे प्रधानमंत्री विश्वविद्यालय में 50 प्रतिशत ‘एनरोलमेंट’ की बात करते हैं तो इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि तीन साल तक के सभी बच्चों को आंगनवाड़ी से जोड़ा जाए। मैंने इसे लेकर एक अभियान शुरू किया है।"

पटेल ने कहा, "छात्रों को आंगनवाड़ी तक लाने के लिए यह जरूरी है कि इन केंद्रों में खेलकूद की सुविधा हो, पौष्टिक खाना उपलब्ध हो और वहां अनेक मनोरंजक और ज्ञानवर्धक गतिविधियों की भी व्यवस्था हो। अगर ऐसा होगा तो लोग अपने बच्चों को आंगनबाड़ी में भेजना पसंद करेंगे। जन सहयोग से अब तक मैंने 25000 आंगनबाड़ी केंद्रों में शैक्षणिक किट वितरित की हैं। किट में मेज, कुर्सी और साइकिल इत्यादि शामिल होती हैं। इसके लिए हमें जनसहयोग से 75 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं।"

उन्होंने कहा, “ हमने जो एक और पहल शुरू की है वह क्षय रोग के उन्मूलन से जुड़ी है। क्षय रोग मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश एक महत्वपूर्ण राज्य है। पिछले पांच वर्षों के दौरान यह एक और अभियान है जिसकी शुरुआत मैंने की है। केंद्र सरकार ने इस मिशन को अपनाया है और अब तक करीब तीन लाख क्षय रोगी ठीक हो चुके हैं।"

पटेल ने कहा ‘‘मैंने एचपीवी वैक्सीन से संबंधित एक अभियान भी शुरू किया है। इसके तहत नौ से 14 वर्ष की सभी लड़कियों को यह टीका लगाया जाना है ताकि वे भविष्य में सर्विकल कैंसर से सुरक्षित रहें। यह कार्य भी जन सहयोग से हो रहा है। अब तक लगभग 15000 बच्चियों को इस टीके की दो खुराक दी जा चुकी हैं और यह सिलसिला जारी है।’’

गुजरात में चार बार विधायक रह चुकी आनंदीबेन पटेल ने अपने जीवन के शुरुआती दिनों को याद किया।

उन्होंने कहा, "हम आज जहां पर हैं वह अपने माता-पिता की परवरिश की वजह से हैं। मैंने 25 वर्षों तक क्षेत्र में काम किया। मेरे माता-पिता ने मुझे पौष्टिक खाना खिलाया और मेरे अंदर अच्छे मूल्यों का संचार किया। मुझे जो भी जिम्मेदारी दी गई, उसे मैंने पूरे समर्पण और लगन से निभाया। कर्म ही मेरा जुनून है।"

जुलाई में सीतापुर में वृक्षारोपण अभियान की चर्चा करते हुए, जहां उन्होंने योजना के अनुसार काम नहीं होने पर सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी व्यक्त की थी, पटेल ने कहा, "कोई भी काम हो, चाहे वह सरकारी हो या कोई दूसरा काम, उसे पूरी ईमानदारी से किया जाना चाहिए। चाहे प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी पौधारोपण का कार्यक्रम हो लेकिन मैं लखनऊ से बाहर जाकर पौधारोपण कार्यक्रम में भाग लेना पसंद करती हूं। यही वजह है कि मैंने छावनी क्षेत्र में जाकर पौधारोपण कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। जब मैं वहां पहुंची तो मैंने देखा कि वहां उस कार्यक्रम को उतना महत्व नहीं दिया जा रहा था जितना कि देना चाहिए था।"

उन्होंने कहा, "उस कार्यक्रम का शीर्षक 'एक पेड़ मां के नाम' था। उस कार्यक्रम में आखिर मां कहां थी? प्रधानमंत्री की इतनी अच्छी पहल है और हम ढंग से एक पौधा तक नहीं लगा सकते? इसी वजह से मैंने उस कार्यक्रम में आपत्ति दर्ज की थी।”

पटेल ने कहा, "मेरे आपत्ति करने के बाद चीजें रातों-रात ठीक हो गई और मुझे व्हाट्सऐप पर संदेश भेजा गया कि सारा काम ठीक से हो गया है। वह काम जो रात में हुआ, वह पहले भी किया जा सकता था। उद्देश्य के प्रति ईमानदारी खत्म होती जा रही है। लोग काम के नाम पर सिर्फ टहलते नजर आते हैं। हम बच्चों के मन में यह बात डालने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें पांच से 10 पौधे लगाने चाहिए क्योंकि उनसे उन्हें भविष्य में मदद मिलेगी लेकिन जब बड़े लोग ही लापरवाही बरतेंगे तो बच्चे क्या सीखेंगे?"

उन्होंने कहा, "क्या मैंने अव्यस्था पर उंगली उठाकर कुछ गलत किया? मैं हमेशा कहती हूं कि किसी को भी गलत बात पर खामोश नहीं रहना चाहिए। कभी-कभी कुछ लोग मानते हैं कि चूंकि हमारी पार्टी की सरकार है इसलिए उसके खिलाफ मुखर नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे सरकार को दिक्कत होगी लेकिन मेरा मानना है कि ऐसी बातें सरकार के खिलाफ नहीं है बल्कि यह अपनी आदतों को ठीक करने के लिए है। यही वजह है कि गलती पर बोलना चाहिए।"

(यह खबर समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा की ऑटो जनरेटेड न्यूज फिड से सीधे ली गई है और लोकतेज टीम ने इसमें कोई संपादकीय फेरबदल नहीं किया है।)