वर्ष 2009-2019 तक हर वर्ष लगभग 15 लाख लोगों की मौत का संबंध वायु प्रदूषण से: अध्ययन
नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि वर्ष 2009 से 2019 के बीच प्रति वर्ष लगभग 15 लाख लोगों की मौत का संबंध लंबे समय तक पीएम 2.5 प्रदूषण के संपर्क में रहने से है। ‘द लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल’ में शोधकर्ताओं में हरियाणा के अशोका विश्वविद्यालय और नयी दिल्ली के ‘सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल’ (सीसीडीसी) के शोधकर्ता शामिल थे। उन्होंने कहा कि भारत की 1.4 अरब आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा बताए गए वार्षिक औसत पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक है।
टीम ने यह भी पाया कि भारत की लगभग 82 प्रतिशत या 1.1 अरब आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां वार्षिक औसत पीएम 2.5 का स्तर भारतीय राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (40 माइक्रॉन प्रति घन मीटर) द्वारा अनुशंसित स्तर से अधिक है।
प्रदूषण 2.5 माइक्रॉन व्यास से छोटे कणों के कारण होता है, जिसमें सूक्ष्म कण पदार्थ या पीएम 2.5 शामिल होते हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पीएम 2.5 प्रदूषण में प्रति घन मीटर 10 माइक्रोन की वार्षिक वृद्धि से वार्षिक मृत्यु दर में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
टीम ने कहा कि भारत में वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभाव और इससे होने वाली मौत के संबंध में साक्ष्य दुर्लभ हैं तथा अन्य देशों के अध्ययनों से मेल नहीं खाते।
पिछले कुछ वर्षों में पीएम 2.5 प्रदूषण के स्तर में व्यापक वृद्धि देखी गई है। पीएम 2.5 का सबसे कम वार्षिक स्तर अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबनसिरी जिले में 2019 में (11.2 माइक्रोन प्रति घन मीटर) दर्ज किया गया और सबसे अधिक वार्षिक स्तर गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 2016 में (119 माइक्रोन प्रति घन मीटर) देखा गया।