‘ऑटिज्म’ का कारण हो सकता है जीन उत्परिवर्तन: आरजीसीबी अध्ययन

‘ऑटिज्म’ का कारण हो सकता है जीन उत्परिवर्तन: आरजीसीबी अध्ययन

तिरुवनंतपुरम, नौ दिसंबर (भाषा) मस्तिष्क के विकास में कार्यात्मक असामान्यताएं पैदा करने वाले विकार ‘ऑटिज्म’ में आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारक जिम्मेदार होते हैं। राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आरजीसीबी) के एक अध्ययन में सोमवार को यह दावा किया गया।

‘ऑटिज्म’ के लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं।

आरजीसीबी की एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि अध्ययन के अनुसार, ‘ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर’ (एएसडी) से जुड़ी जटिलताओं में प्रारंभिक विकासात्मक जीन में विकार के लक्षण अक्सर दो वर्ष की आयु में ही सामने आने लगते हैं।

डॉ. जैक्सन जेम्स और ब्रिक-आरजीसीबी में उनकी टीम द्वारा किया गया यह अध्ययन प्रतिष्ठित पत्रिका ‘आईसाइंस’ में प्रकाशित हुआ है।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि अनुसंधान में टीएलएक्स3 जीन में एक नए उत्परिवर्तन की पहचान की गई है, जो सेरबेलम (छोटे या अनु मस्तिष्क) के असामान्य विकास और ऑटिज्म से जुड़ा है।

डॉ. जेम्स ने इस टीएलएक्स3 उत्परिवर्तन की आवृत्ति और भारतीयों समेत विशिष्ट आबादी के साथ इसके संबंध को निर्धारित करने के लिए जीनोम-व्यापी वैश्विक विश्लेषण की आवश्यकता पर बल दिया।

विज्ञप्ति में बताया गया है कि अध्ययन के निष्कर्ष इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि भ्रूणीय जीन संबंधी यह विकार बचपन में एएसडी से पीड़ित होने का कारण हो सकता है।

आरजीसीबी के निदेशक प्रोफेसर चंद्रभास नारायण ने कहा, ‘‘ऑटिज्म दुनिया भर में बच्चों से जुड़ी एक गंभीर समस्या है। भारत में यह अपने व्यापक सामाजिक और चिकित्सकीय प्रभावों के कारण शोधकर्ताओं और चिकित्सा जगत के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है। आरजीसीबी का अध्ययन व्यवहार संबंधी इस विकार के बारे में नयी जानकारी प्रदान करता है।’

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