पुलिस 31 साल पहले अपहृत युवक की संदिग्ध दोहरी कहानी का सच जानने में जुटी

पुलिस 31 साल पहले अपहृत युवक की संदिग्ध दोहरी कहानी का सच जानने में जुटी

गाजियाबाद, दो दिसंबर (भाषा) उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की पुलिस कथित तौर पर 31 वर्ष पहले अपहृत और फिर सामने आकर गाजियाबाद एवं देहरादून के दो परिवारों को खुद को उनके खोये बेटे के तौर पर स्थापित करने की एक युवक की कोशिश की पड़ताल में जुट गयी है। एक पुलिस अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी।

ट्रांस हिंडन के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) निमिष पाटिल ने बताया कि साहिबाबाद पुलिस कथित राजू की असली पहचान का पता लगाने में जुटी है, जिसने यह दोहरी कहानी गढ़ी है। उन्होंने बताया कि राजू ने शहीद नगर गाजियाबाद के तुलाराम परिवार को अपना नाम भीम सिंह उर्फ राजू जबकि देहरादून की आशा शर्मा के परिवार को अपना नाम मोनू शर्मा बताकर उनका खोया बेटा बनने की कोशिश की।

पुलिस अधिकारी के अनुसार करीब 31 वर्ष पूर्व गाजियाबाद के शहीद नगर स्थित दीनबंधु पब्लिक स्कूल से घर लौटते समय तीन लोगों ने कथित तौर पर भीम सिंह उर्फ राजू को अगवा कर लिया था। उस समय वह सात वर्ष का छात्र था। उन्होंने कहा कि मामले की छानबीन की जा रही है।

राजू ने कबूल किय है कि वह आशा शर्मा के परिवार के साथ रहने के बाद वह जैसलमेर राजस्थान से नहीं बल्कि देहरादून से खोड़ा थाने पहुंचा और तुलाराम के परिवार में शामिल हो गया।

सोमवार सुबह जब पीटीआई—भाषा ने गाजियाबाद के तुलाराम से उसके मोबाइल पर संपर्क किया तो उसने राजू (38) को अपने साथ रखने से साफ मना कर दिया।

राजू 31 साल के लंबे अलगाव के बाद जो अब बुधवार 30 नवंबर को कथित तौर पर अपने परिवार से मिला था। उसने अपनी दर्दनाक आपबीती बतायी कि सितंबर 1993 में अपहरण के बाद उसे एक ट्रक ड्राइवर को सौंप दिया गया था, जो उसे राजस्थान के जैसलमेर ले गया।

अपहरणकर्ताओं ने उसे सुनसान इलाके में एक कमरे में रखा, जहां उसे भेड़-बकरियों की देखभाल करने के लिए मजबूर किया जाता था और हर रात उसे जंजीरों में बांधकर कमरे में बंद कर दिया जाता था।

हालांकि, देहरादून के कुछ अखबारों में एक ऐसी ही कहानी का विवरण देने वाली खबर छपने के बाद मामले ने एक नाटकीय मोड़ ले लिया। इसके बाद गाजियाबाद पुलिस ने देहरादून में अपने समकक्षों से संपर्क किया, जहां मोनू शर्मा नामक व्यक्ति की कहानी सामने आई।

पुलिस ने यहां बताया कि देहरादून के एक पुलिस थाने में करीब पांच माह पहले एक व्यक्ति पहुंचा और उसने पुलिस से अपने माता-पिता को ढूंढने की गुहार लगाई। पुलिस ने समाचार पत्रों तथा अन्य माध्यमों से उसकी तस्वीर प्रसारित की जिसके बाद बरसों से बाट जोह रही एक महिला आशा शर्मा ने उसे अपने पुत्र के रूप में पहचान लिया और इस तरह उसका अपने परिवार से पुनर्मिलन हो गया।

पुलिस ने बताया कि लेकिन कुछ दिन पहले अपने घर से किसी काम के सिलसिले में दिल्ली जाने के लिए निकले मोनू ने फिर अपने माता-पिता से कभी संपर्क नहीं किया।

बाद में आशा को पता चला कि उनके कथित बेटे ने गाजियाबाद पुलिस से अपने माता-पिता को ढूंढने को कहा और उसके बाद उसका वहां भी अपने ‘‘नए’’ परिवार से पुनर्मिलन हो गया है।

इस नए खुलासे ने राजू के पिता तुलाराम के साथ-साथ पुलिस के लिए भी भ्रम और संदेह पैदा कर दिया है, जबकि राजू की मां और बहनों का मानना है कि घर लौटा व्यक्ति उनका लापता बेटा और भाई है। अधिकारी मामले में आगे की जांच कर रहे हैं।

डीसीपी पाटिल ने कहा, "राजू के बयानों में विसंगतियां सामने आई हैं, क्योंकि वह उस ट्रक चालक का नाम नहीं बता सका जिसने उसे देहरादून और गाजियाबाद दोनों जगहों पर छोड़ा था, जिससे संदेह पैदा हुआ।"

राजू के अपहरण के पीछे की सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस की जांच जारी है।

अधिकारी ने कहा, "राजू के बयानों में विसंगतियों के बावजूद, हम उसके दावों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए मामले की गहन जांच कर रहे हैं।" उन्होंने कहा कि जब पुलिस राजू को पूछताछ के लिए साहिबाबाद पुलिस स्टेशन ले जाने के लिए तुलाराम के घर पहुंची तो उसने भागने की कोशिश की जिससे परिवार और पुलिस का संदेह बढ़ गया।