जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए मुकदमे के निपटारे के लिए समय तय करना ठीक नहीं: न्यायालय

जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए मुकदमे के निपटारे के लिए समय तय करना ठीक नहीं: न्यायालय

नयी दिल्ली (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए मुकदमे की सुनवाई पूरी करने का समय तय करने के उच्च न्यायालयों के निर्देशों पर आपत्ति जताई और कहा कि इन्हें लागू करना कठिन है तथा इनसे वादियों में झूठी उम्मीद जगती है।
 
न्यायालय ने कहा कि ऐसे निर्देशों से निचली अदालतों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि कई निचली अदालतों में एक ही तरह के पुराने मामले लंबित हो सकते हैं।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, ‘‘हम हर दिन देख रहे हैं कि विभिन्न उच्च न्यायालय जमानत याचिकाएं खारिज करके मुकदमों के समापन के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय कर रहे हैं।’’
 
शीर्ष अदालत ने यह आदेश एक व्यक्ति को जमानत देते हुए पारित किया, जो कथित जाली नोटों के मामले में ढाई साल से जेल में है।
 
पीठ ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि मुकदमा उचित समय में पूरा होने की संभावना नहीं है और अपीलकर्ता इस सुस्थापित नियम के अनुसार जमानत पर रिहा किए जाने का हकदार है कि ‘‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है।’’
 
इसने कहा कि प्रत्येक अदालत में आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनका कई कारणों से शीघ्र निपटारा आवश्यक है।
 
पीठ ने 25 नवंबर के अपने फैसले में कहा, ‘‘केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति हमारी संवैधानिक अदालतों में याचिका दायर करता है, उसे बिना बारी के सुनवाई का मौका नहीं दिया जा सकता। अदालतें शायद जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए मुकदमे के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय करके आरोपी को कुछ संतुष्टि देना चाहती हैं।’’
 
इसने कहा, ‘‘ऐसे आदेशों को लागू करना मुश्किल है। ऐसे आदेश वादियों में झूठी उम्मीद जगाते हैं।”