नई दिल्ली : बोडो लोगों की तरह बम-बंदूक छोड़ विकास का मार्ग अपनाएं नक्सलीः प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को बोडोलैंड समझौते को पूर्वोत्तर में स्थायी शांति स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया
नई दिल्ली, 15 नवंबर (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को बोडोलैंड समझौते को पूर्वोत्तर में स्थायी शांति स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया और नक्सलियों से अपील की कि वे भी बम-बंदूक का रास्ता छोड़ विकास का मार्ग अपनाएं। उन्होंने कहा कि बोडो लोगों ने इसी विकास का रास्ता अपनाया और पिछले चार सालों में हमें बदलाव देखने को मिल रहा है। इसी क्रम में हम पूर्वोत्तर के राज्यों के सीमा विवादों का सौहार्द्र के साथ समाधान खोज रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज शाम नई दिल्ली स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण इंदिरा गांधी खेल परिसर में प्रथम बोडोलैंड महोत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित भी किया। यह महोत्सव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 2020 में बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से सुधार और उबरने की महत्वपूर्ण उपलब्धि का जश्न मना रहा है।
इस शांति समझौते पर प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे न केवल बोडोलैंड में दशकों से चले आ रहे संघर्ष, हिंसा और जानमाल के नुकसान की समस्या से निजात मिली बल्कि यह समझौता अन्य शांति समझौतों के लिए प्रेरणास्रोत भी बना। शांति समझौते के कारण अकेले असम में 10 हजार से अधिक युवाओं ने हथियार और हिंसा छोड़ दी और वे मुख्यधारा में शामिल हो गये। किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि कार्बी आंगलोंग शांति समझौता, ब्रू-रियांग समझौता और एनएलएफटी त्रिपुरा समझौता हकीकत बन जाएगा।
विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने बोडोलैंड के लिए 1500 करोड़ रुपये का विशेष पैकेज आवंटित किया है। इसके अतिरिक्त असम सरकार ने अपना विशेष विकास पैकेज लागू किया है। बोडोलैंड में शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति से संबंधित बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 700 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने बोडोलैंड महोत्सव को दशकों की हिंसा के बाद आया एक भावुक पल बताया। उन्होंने कहा कि वे पूर्वोत्तर में नया अध्याय लिखने के लिए बोडो लोगों का धन्यवाद देने आए हैं। उनके इस कथन के बाद कर्तल ध्वनि से स्टेडियम गूंज गया।
उन्होंने भरोसा दिलाते हुए कहा, “मेरे सभी बोडो भाई-बहन मुझ पर विश्वास करना, मैं आपकी आशा आकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए मेहनत करने में कोई कमी नहीं रखूंगा। उसका सबसे बड़ा कारण ये है कि आप लोगों ने मुझे जीत लिया है। इसलिए मैं हमेशा-हमेशा आपका हूं, आपके लिए हूं और आपके कारण हूं। ”
प्रधानमंत्री ने असम को भारत और बोडोलैंड को असम की पर्यटन शक्ति बताया और कहा कि असम सहित पूरा पूर्वोत्तर भारत की अष्टलक्ष्मी है। अब विकास का सूरज पूर्वी भारत से उगेगा, जो विकसित भारत के संकल्प को नई ऊर्जा देगा। इसलिए हम पूर्वोत्तर में स्थायी शांति के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों के सीमा विवादों का सौहार्द्र के साथ समाधान खोज रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि दो दिन 15 और 16 नवंबर को आयोजित महोत्सव जोशपूर्ण बोडो समाज के निर्माण और शांति बनाए रखने के लिए भाषा, साहित्य और संस्कृति का बड़ा आयोजन है। इसका उद्देश्य न केवल बोडोलैंड में बल्कि असम, पश्चिम बंगाल, नेपाल और पूर्वोत्तर के अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय बोडो लोगों को एकीकृत करना है।
महोत्सव का विषय है ‘समृद्ध भारत के लिए शांति और सद्भाव’, इसमें बोडो समुदाय के साथ-साथ बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) के अन्य समुदायों की समृद्ध संस्कृति, भाषा और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसका उद्देश्य बोडोलैंड की सांस्कृतिक और भाषाई विरासत, पारिस्थितिक जैव विविधता और पर्यटन के लिए उपयुक्त स्थलों का लाभ उठाना है।
भारतीय विरासत और परंपराओं में योगदान दे रहे ‘समृद्ध बोडो संस्कृति, परंपरा और साहित्य’ पर आयोजित सत्र महोत्सव का मुख्य आकर्षण होगा, जिसमें समृद्ध बोडो संस्कृति, परंपराओं, भाषा और साहित्य की श्रृंखला पर विचार-विमर्श किया जाएगा। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के माध्यम से मातृभाषा माध्यम से शिक्षा की चुनौतियां और अवसर’ विषय पर भी एक सत्र आयोजित किया जाएगा। बोडोलैंड क्षेत्र के पर्यटन और संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संस्कृति तथा पर्यटन के माध्यम से ‘स्थानीय सांस्कृतिक बैठक और ‘जोशपूर्ण बोडोलैंड’ क्षेत्र के निर्माण पर विषयगत चर्चा सत्र भी आयोजित किया जाएगा।
इस समारोह में बोडोलैंड क्षेत्र, असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, भारत के अन्य भागों तथा पड़ोसी राज्यों नेपाल और भूटान से आने वाले पांच हजार से अधिक सांस्कृतिक, भाषाई और कला प्रेमी शामिल होंगे।