नई दिल्ली : अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले से भारतीय बाजार में तेजी आने की उम्मीद

ये कटौती भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए बड़ा बूस्टर साबित हो सकती है

नई दिल्ली : अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले से भारतीय बाजार में तेजी आने की उम्मीद

नई दिल्ली, 19 सितंबर (हि.स.)। अमेरिकी फेडरल रिजर्व (यूएस फेड) ने ज्यादातर अर्थशास्त्रियों के अनुमान से आगे बढ़ कर ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती करके वैश्विक अर्थव्यवस्था की हलचल को तेज कर दिया है। अमेरिका में मार्च 2020 के बाद ब्याज दरों में पहली बार हुई कटौती को लेकर अब विशेषज्ञ चिंता भी जाहिर कर रहे हैं। वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ब्याज दरों में हुई कटौती भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए बूस्टर साबित हो सकती है।

यूएस फेड द्वारा 50 बेसिस प्वाइंट की इस कटौती के साथ ही इंटरेस्ट रेट साइकिल में नरमी आने की उम्मीद बनी है। इससे भारतीय शेयर बाजार में आईटी सेक्टर के साथ ही बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे सेक्टर्स को सपोर्ट मिल सकता है। इसके साथ ही एफएमसीजी और फार्मास्यूटिकल जैसे सेक्टर के चुनिंदा शेयरों को भी सपोर्ट मिलने की उम्मीद बनी है।

यूएस फेड द्वारा ब्याज दरों में की गई 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती को लेकर कई विशेषज्ञों का मानना है कि यूएस फेड के इस कदम को अमेरिका में संभावित आर्थिक मंदी को लेकर फेड की बढ़ती आशंकाओं के संकेत के रूप में देखा जा सकता है। मार्केट एक्सपर्ट निलेश जैन का कहना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा लगातार मंडरा रहा है। ऐसी स्थिति में अगर ब्याज दरों की कटौती के तत्काल सकारात्मक परिणाम नहीं आए तो हालत काफी बिगड़ सकते हैं।

दूसरी ओर, टाटा फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ एनालिस्ट राजीव बग्गा क्या कहना है कि ब्याज दरों में कटौती से उभरते बाजारों में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। ये कटौती भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए बड़ा बूस्टर साबित हो सकती है। खासकर भारत के बैंकिंग सिस्टम या फाइनेंशियल सर्विसेज में यूएस फेड के इस कदम का काफी अच्छा असर दिख सकता है।

इसी तरह कोटक महिंद्रा के नीलकंठ मिश्र का कहना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में होने वाला कोई भी सकारात्मक बदलाव भारत के बैंकिंग सिस्टम के साथ आईटी सेक्टर के लिए भी काफी फायदेमंद हो सकता है। ब्याज दरों में कटौती के बाद विदेशी संस्थागत निवेशक भी भारतीय बाजार के प्रति पहले से अधिक रुचि दिखा सकते हैं। खासकर टर्म वैल्यूएशन के महंगा होने की वजह से चुनिंदा शेयरों में भी विदेशी संस्थागत निवेशकों की रुचि बढ़ सकती है, जिससे अंततः भारतीय बाजार को ही फायदा होगा।

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