नई दिल्ली : भविष्य के लिए सेनाओं के हथियार भारत में ही विकसित और निर्मित हों : एयर मार्शल
डीआरडीओ से लेकर डीपीएसयू और निजी उद्योग से सहयोग का आह्वान - सशस्त्र बलों की आत्मनिर्भरता राष्ट्र की रक्षा की कीमत पर नहीं हो सकती
नई दिल्ली, 19 जुलाई (हि.स.)। 'आत्मनिर्भर भारत' पर जोर देते हुए वायु सेना उप प्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह ने शुक्रवार को कहा कि भविष्य के लिए सेनाएं जिन हथियारों की बात कर रही हैं, उन्हें भारत में ही विकसित और निर्मित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम आत्मनिर्भरता की राह पर चल रहे हैं लेकिन यह आत्मनिर्भरता राष्ट्र की रक्षा की कीमत पर नहीं हो सकती। भारतीय सेनाओं की आत्मनिर्भरता तभी संभव है, जब डीआरडीओ से लेकर डीपीएसयू और निजी उद्योग तक सभी हमारा हाथ थामे और हमें उस रास्ते से भटकने न दें।
नई दिल्ली में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए एयर मार्शल ने कहा कि दुनिया में जीवित रहने के लिए जरूरी व्यवस्था और हथियार के न मिलने पर हमें अपने रास्ते से भटकने की मजबूरी होगी। उन्होंने आह्वान किया कि हम एक ऐसी व्यवस्था बनाएं, जहां हम समग्र लक्ष्य को प्राप्त करने में एक-दूसरे की मदद कर सकें।
अगर हमें राष्ट्र की रक्षा करनी है तो यह किसी और का नहीं, यह हमारा अपना लक्ष्य है। यह हर किसी का काम है, यह सिर्फ़ वर्दीधारी व्यक्ति का काम नहीं है। उन्होंने कहा कि यह कुछ ऐसा है, जिसमें हमें अपना दिल और आत्मा लगाने की जरूरत है। हम जिन तकनीकों और हथियारों के बारे में बात कर रहे हैं, वे सभी भारत में विकसित और निर्मित हों, ताकि हम किसी बाहरी एजेंसी पर निर्भर न रहें। यानी बाहरी ताकतें हमारे देश में हथियारों के प्रवाह रोककर समय आने पर हमें मुश्किल में न डाल सकें।
वायुसेना के उप प्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह ने कहा कि देश की सुरक्षा सबसे पहले आती है और अगर भारतीय सेनाओं को इस आत्मनिर्भरता पर आगे बढ़ना है, तो यह तभी संभव है, जब रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) से लेकर रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (डीपीएसयू) और निजी उद्योग तक हर कोई हमारा हाथ थामे और हमें उस रास्ते पर ले जाए, हमें उस रास्ते से भटकने न दे। एयर मार्शल ने कहा कि हम सभी समझते हैं कि एक राष्ट्र के रूप में हम आज बड़ी संख्या में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यह पारंपरिक चुनौतियां तेजी से अधिक आक्रामक होती जा रही हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय वायु सेना के रूप में हम डीआरडीओ, निजी उद्योग, संचार, कमान और नियंत्रण के साथ जुड़े हुए हैं और हमारे पास पहले से ही एक बहुत मजबूत वायु रक्षा नेटवर्क है।
उन्होंने कहा कि इस अत्यधिक सघन युद्धक्षेत्र में हमें अपने पास उपलब्ध संसाधनों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने के लिए योजनाएं बनाने की आवश्यकता है। साथ ही हमें अपनी टेक्नोलॉजी को अपग्रेड करने या खरीद करके अपनी प्रणाली में सुधार करने की जरूरत है। हम तकनीक को इस तरह से लागू कर रहे हैं, ताकि हम समझ सकें कि हम कहां जा रहे हैं और क्या हम भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि आज की भू-राजनीति से हमने 'आत्मनिर्भर' होने का सबसे बड़ा सबक सीखा है। जंग में कोई स्थायी दुश्मन या स्थायी दोस्त नहीं होता। उन सभी के स्थायी हित होते हैं। इसलिए आत्मनिर्भरता और आत्मनिर्भर की हम बात कर रहे हैं, जो केवल शब्द नहीं हैं।