आईआईटी ने बनाई डाई युक्त जल को साफ करने की नई तकनीक

आईआईटी ने बनाई डाई युक्त जल को साफ करने की नई तकनीक

पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और स्थायी जल का पुन: उपयोग को बढ़ावा देने के लिए इस अपशिष्ट जल का प्रभावी उपचार महत्वपूर्ण है

जोधपुर, 25 जून (हि.स.)। आईआईटी जोधपुर ने कपड़ा रंगाई उद्योग से निकलने वाले दूषित व अपशिष्ट (डाई युक्त) जल को साफ करने की नई तकनीक विकसित की है, इससे अब पर्यावरण को भी कम नुकसान होगा। यह नई विधि 222 नैनोमीटर वाले पर्यावरण अनुकूल पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश का विकास करके बनाई गई है, जो 254 नैनोमीटर पर पारंपरिक पारा-आधारित पराबैंगनी प्रकाश की तुलना में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है।

दरअसल कपड़ा रंगाई और विनिर्माण उद्योग द्वारा बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल नदी-नालों में छोड़ जा रहा है जिसमें एज़ो डाई जैसे लगातार दूषित पदार्थ होते हैं। उन्हें पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके निकालना चुनौतीपूर्ण होता है। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और स्थायी जल का पुन: उपयोग को बढ़ावा देने के लिए इस अपशिष्ट जल का प्रभावी उपचार महत्वपूर्ण है। आईआईअी जोधपुर के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर रामप्रकाश के नेतृत्व में पीएचडी शोधार्थी किरण अहलावत और रामावतार जांगड़ा ने मिलकर 222 नैनोमीटर क्रिप्टोन क्लोराइड एक्साइमर पराबैंगनी प्रकाश स्रोत का विकास करके एक नया तरीका विकसित किया है। इस विधि से रिएक्टिव ब्लैक 5 जैसी डाईज को तोडऩे में उल्लेखनीय प्रभावशीलता दिखाई है। इनके द्वारा हाल ही में नेचर: साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित अध्ययन में टाइटेनियम डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन पेरोक्साइड का उपयोग करके प्रत्यक्ष फोटोलिसिस और एक उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रिया पता लगाया है। पारंपरिक अल्ट्रावॉयलेट-सी आधारित विधियों की तुलना में उनके डिज़ाइन किए गए एक्साइमर-222 प्रकाश और हाइड्रोजन पेरोक्साइड के साथ बनाये गए उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रिया के साथ आरबीजेड की गिरावट दर लगभग 27 गुना ज्यादा पाई गई। आईआईटी जोधपुर की टीम इस प्रक्रिया को अनुकूलित करने और वास्तविक दुनिया की औद्योगिक परिस्थितियों में इसके अनुप्रयोग का पता लगाने के लिए और अधिक शोध करने की योजना बना रही है। इसके अतिरिक्त, उनका लक्ष्य अन्य पर्यावरणीय सफाई कार्यों और टिकाऊ कृषि प्रथाओं के लिए अनुकूल पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश के उपयोग की जांच करना है।

Tags: Feature