मतदान के दौरान आपकी उंगली पर लगाई जाने वाली स्याही की बूंद की कीमत होती है 12.7 रुपये

मतदान के दौरान आपकी उंगली पर लगाई जाने वाली स्याही की बूंद की कीमत होती है 12.7 रुपये

देश में इन दिनों लोकसभा चुनावों के लिये विभिन्न चरणों में मतदान की प्रक्रिया चल रही है। मतदान यूं तो ईवीएम क जरिये होता है, लेकिन फर्जी मतदान या एक ही व्यक्ति दोबारा वोट न दे दे, इसलिये मतदाता के बांये हाथ की उंगली पर नीले रंग की स्याही का निशान बनाने की परंपरा है। आपने भी मतदान किया होगा और स्याही लगवाई होगी। आज हम आपको इसी विशेष रुप से चुनाव के दौरान उपयोग में ली जाने वाली स्याही के बारे में कुछ रोचक जानकारी देंगे।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल मैसूर पेइन्ट एंड वार्निश लिमिटेड नामक कंपनी इस नीले रंग की स्याही का उत्पादन करती है। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च के वैज्ञानिकों ने 1952 में नेशनल फिजिकल लेबोरेटिरी में इस स्याही की फोर्म्यूला विकसित की थी। इसके बाद उसे नेशनल रिसर्च डेवलेपमेंट कोर्पोरेशन द्वारा पेटेन्ट करवाया गया। 

जानकारी के अनुसार इस स्याही के एक बोतल में 10 मिली द्रव्य होता है जिसकी कीमत 127 रुपये है। ऐसे में कहा जा सकता है कि एक बूंद स्याही की कीमत 12.70 के लगभग होगी। एक लीटर की ऐसी एक बोतल की कीमत 12700 रुपये होती है और इस एक बोतल से 700 उंगलियों पर स्याही का निशान लगाया जा सकता है। 

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये स्याही बनाने वाली कंपनी रिटेल में इसकी बिक्री नहीं करती। ये स्याही केवल सरकार या चुनाव संबंधी ऐजेंसियां ही खरीद सकती हैं। 1962 से नेशनल रिसर्च डेवलेपमेंट कोर्पोरेशन द्वारा प्रदत्त विशेष लायसन्स के मारफत भारत वर्ष में ये कंपनी इस स्याही की एकमात्र अधिकृत सप्लायर है। 1962 में चुनाव आयोग ने केंद्रीय कानून मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला और कोर्पोरेशन के साथ मिलकर चुनाव के लिये इस स्याही की आपूर्ति के लिये कंपनी के साथ करार किया था। 

नीले रंग की ये स्वाही बनाने के लिये सिल्वर नाइट्रेट रसायन का उपयोग किया जाता है। स्याही लगाने के बाद यह द्रव्य पानी के संपर्क में आने पर काला पड़ जाता है और हल्का पड़ जाता है। लेकिन तुरंत मिटता नहीं। यह सिल्वर नाइट्रेट शरीर में मौजूद नमक के संपर्क में आने पर सिल्वर क्लोराइड बनाता है जिसका रंग काला होता है। सिल्वर क्लोराइड पानी में नहीं घूलता और त्वचा के साथ जुड़ा रहता है। इसे साबून से भी नहीं धोया जा सकता। उसमें आल्कोहोल भी होता है जिसके कारण वह 40 सेकन्ड से भी कम समय में सुख जाता है। 

इस स्याही का उपयोग पहली बार 1962 में लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ था। जानकारी के अनुसार ये स्वाही बनाने वाली कंपनी इसका भारत के अलावा केनेडा, घाना, नाइजिरिया, मंगोलिया, मलेशिया, नेपाल, साउथ अफ्रिका और मालदीव्स जैसे 25 से अधिक देशों में इसकी सप्लाई करती है।

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